1. उत्तर भारत की पुष्प सजावट की परंपराएँ
उत्तर प्रदेश, पंजाब, और हरियाणा के पूजा फूलों की विविधता
उत्तर भारत में पारंपरिक पूजा एवं धार्मिक आयोजनों में फूलों का विशेष महत्व है। यहां के अलग-अलग राज्यों में पूजा के लिए अलग-अलग तरह के फूल उपयोग किए जाते हैं। नीचे दी गई तालिका में इन राज्यों के प्रमुख पूजा फूल और उनकी खासियतें दर्शाई गई हैं:
राज्य | प्रमुख पूजा फूल | विशिष्टता |
---|---|---|
उत्तर प्रदेश | गेंदे, गुलाब, चमेली | गेंदे की माला देवी-देवताओं को अर्पित करना, गुलाब से पंडाल सजावट, चमेली से मंदिरों की सजावट |
पंजाब | गुलाब, मोगरा, चंपा | गुरुद्वारों में गुलाब जल का छिड़काव, मोगरे की माला गुरुओं को अर्पित करना, चंपा से धार्मिक स्थल सजाना |
हरियाणा | गेंदे, रातरानी, जूही | गांवों में गेंदे की रंग-बिरंगी मालाओं का उपयोग, रातरानी की सुगंध से घर और मंदिर पवित्र करना, जूही से दीपक सजा कर पूजा स्थल बनाना |
मालाओं का महत्व और स्थानीय सजावट शैलियाँ
पूजा में फूलों की मालाओं का बड़ा महत्व है। उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में देवी-देवताओं की प्रतिमाओं और मंदिरों को रंग-बिरंगी मालाओं से सजाया जाता है। खासकर त्योहारों जैसे जन्माष्टमी, राम नवमी या गुरुपर्व पर विशिष्ट प्रकार की पुष्प सजावट देखने को मिलती है। ग्रामीण इलाकों में लोग खुद मालाएँ बनाते हैं और उनमें पारंपरिक कलात्मकता झलकती है। माला बनाने के लिए प्रायः ताजे फूलों का उपयोग होता है ताकि पूजा स्थान सुगंधित और आकर्षक बने।
इसके अलावा उत्तर भारत के कई हिस्सों में पूजा थाल (थाली) को भी फूलों से सजाने का रिवाज है। महिलाएँ थाल को गेंदे या गुलाब की पंखुड़ियों से खूबसूरती से सजाती हैं। इससे पूजा स्थल न केवल सुंदर दिखता है बल्कि वातावरण भी सकारात्मक और भक्तिमय हो जाता है।
लोकप्रिय पुष्प सजावट शैलियाँ:
- फूलों की टोकरी (Basket Arrangement)
- झूमर या तोरण (Flower Toran/Chandelier)
- फूलों के मंडप (Floral Pavilion)
- दीवार पर फूलों की बेल (Wall Garland)
- पूजा स्थल पर पुष्प रंगोली (Flower Rangoli)
निष्कर्ष नहीं शामिल किया गया है क्योंकि यह लेख का पहला भाग है। अगले भाग में दक्षिण भारतीय राज्यों की पुष्प सजावट शैलियों के बारे में जानेंगे।
2. दक्षिण भारत में पुष्प अर्पण की शैली
तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक में फूलों की सजावट का महत्व
दक्षिण भारत के राज्यों – तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक – में पूजा और धार्मिक आयोजनों में फूलों का विशेष स्थान है। यहां हर त्योहार, रोजाना पूजा या मंदिर उत्सव में फूलों से रंगोली (कोलम), पंडाल सजावट और मलार का उपयोग आम बात है। इन फूलों की सजावट न सिर्फ सौंदर्य बढ़ाती है, बल्कि यह सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
फूलों की रंगोली (कोलम) की परंपरा
दक्षिण भारतीय घरों के प्रवेश द्वार पर हर सुबह महिलाएँ चावल के आटे और ताजे फूलों से सुंदर कोलम बनाती हैं। त्योहारों या खास अवसरों पर इसमें गुलाब, चमेली, गेंदे जैसे रंगीन फूलों का उपयोग होता है। कोलम को शुभता का प्रतीक माना जाता है और यह घर में सकारात्मक ऊर्जा लाता है।
राज्य | स्थानीय नाम | प्रमुख उपयोगी फूल |
---|---|---|
तमिलनाडु | कोलम / पूवू कोलम | चमेली (मल्लिगै), गुलाब, गेंदे |
केरल | पूक्कलं | थुंबा, गुलाब, शेवंती, गेंदे |
कर्नाटक | रंगोली / हुवा रंगोली | कन्निका, चमेली, गेंदे |
पूजा पंडाल और मंदिरों में मलार का उपयोग
मलार यानी ताजे फूलों की माला दक्षिण भारत के मंदिरों और पूजा स्थलों की विशेषता है। देवी-देवताओं की मूर्तियों को प्रतिदिन या खास पर्व पर मलार पहनाई जाती है। यह धार्मिक भक्ति और पवित्रता का प्रतीक होती है। तमिलनाडु में अम्मान मंदिरों में, केरल के भगवती उत्सव और कर्नाटक के गणेश चतुर्थी समारोह में रंग-बिरंगी मालाओं का अत्यधिक महत्व रहता है।
अनुष्ठान/अवसर | फूलों का प्रयोग |
---|---|
रोजाना पूजा (नित्य पूजा) | चमेली की माला, गेंदे के गजरे, ताजे कमल या शंखपुष्पी |
त्योहार (पोंगल, ओणम) | विशेष पुष्प रंगोली (कोलम/पूक्कलं), बड़ी मालाएँ देवी-देवताओं को अर्पित करना |
मंदिर उत्सव (कार्तिकई दीपम) | सैकड़ों किलो फूलों से मंडप व मूर्तियों की भव्य सजावट |
संस्कृति में महत्व और स्थानीय भाषा में अभिव्यक्ति
दक्षिण भारत की भाषाओं – तमिल, मलयालम, कन्नड़ – में फूलों की सजावट से जुड़े कई पारंपरिक गीत एवं कहावतें प्रचलित हैं। यहाँ बच्चों को बचपन से ही कोलम बनाना सिखाया जाता है और महिलाएँ एक-दूसरे को सुंदर मलार गिफ्ट करती हैं। इस प्रकार पुष्प अर्पण यहाँ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि जीवनशैली का अहम हिस्सा बन चुका है।
3. पूर्वी भारत की अनूठी पुष्प परंपराएँ
बंगाल, ओडिशा और असम की पूजा में फूलों का महत्व
पूर्वी भारत के राज्यों में पुष्प सजावट पूजा का एक अभिन्न हिस्सा है। बंगाल, ओडिशा और असम में पारंपरिक पर्वों जैसे दुर्गा पूजा, रथ यात्रा या बिहू में अलग-अलग किस्म के फूलों और सजावट शैलियों का प्रयोग किया जाता है। स्थानीय बोली और संस्कृति के अनुसार इन फूलों के नाम और उनका महत्व भी भिन्न होता है।
दुर्गा पूजा (बंगाल) में उपयोग किए जाने वाले फूल
फूल का नाम (स्थानीय भाषा) | हिंदी नाम | प्रयोग |
---|---|---|
शिउली (শিউলি) | हरसिंगार | माँ दुर्गा को अर्पित, पंडाल सजावट |
चम्पा (চাঁपा) | चम्पा | मूर्ति पूजा, मंडप सजावट |
गेंदाफूल (গাঁদা) | गेंदा | तोरण, मालाएँ, रंगोली किनारे |
लोटस (পদ্ম) | कमल | विशेष आरती व देवी पूजन |
रथ यात्रा (ओडिशा) की पुष्प सजावट शैली
फूल का नाम (ओड़िया भाषा) | हिंदी नाम | परंपरागत उपयोग |
---|---|---|
मल्लिका (ମଲ୍ଲିକା) | मोगरा/चमेली | भगवान जगन्नाथ के रथ व मंदिर सजावट में प्रयोग |
कदम्ब (କଦମ୍ବ) | कदंब फूल | रथ के चारों ओर व शिरोवस्त्र में लगाया जाता है |
गेंदा (ଗେଁଦା) | गेंदा फूल | तोरण व द्वार सजावट हेतु लोकप्रिय विकल्प |
तुलसी दल (ତୁଳସୀ ପତ୍ର) | तुलसी पत्ता (फूल सहित) | भगवान को चढ़ाया जाता है, पवित्रता प्रतीक |
असम की पूजा एवं बिहू में फूलों का प्रयोग
फूल का नाम (असमिया भाषा) | हिंदी नाम | लोकप्रियता व उपयोग |
---|---|---|
Kopou phool (কপৌ ফুল) | फॉक्सटेल ऑर्किड | Bihu नृत्यांगनाओं के बालों में सजावटी फूल |
Bokul phool (বকুল ফুল) | Bakul/मौलश्री | Puja थाली व घर की शोभा बढ़ाने हेतु इस्तेमाल |
Tulip phool (টিউলিপ ফুল) | Tulip | Naya साल व उत्सवों में गिफ्टिंग हेतु प्रचलित |
स्थानीय शब्दावली और सांस्कृतिक महत्व
Bengal में शिउली को शुभता का प्रतीक माना जाता है, वहीं Odisha में मल्लिका यानी चमेली भगवान जगन्नाथ को प्रिय है। Assam की Kopou युवा लड़कियों के श्रृंगार का अहम हिस्सा है। फूल केवल साज-सज्जा तक सीमित नहीं, बल्कि हर राज्य की आस्था और सांस्कृतिक पहचान से भी जुड़े हैं। विभिन्न क्षेत्रों की भाषाई विविधता भी इन पुष्प परंपराओं में देखने को मिलती है।
4. पश्चिम भारत की पुष्प सजावट में भिन्नता
महाराष्ट्र, गुजरात, और राजस्थान की पारंपरिक फूल सजावट
पश्चिम भारत के प्रमुख राज्य – महाराष्ट्र, गुजरात, और राजस्थान – में पूजा के दौरान फूलों की सजावट के अपने-अपने अनोखे तरीके हैं। इन राज्यों में पारंपरिक रूप से जिन फूलों का चयन किया जाता है, वे न केवल सुंदरता बढ़ाते हैं, बल्कि उनका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी होता है।
फूलों का चयन एवं उनका महत्त्व
राज्य | प्रमुख पूजा फूल | सजावट शैली | खास विशेषता |
---|---|---|---|
महाराष्ट्र | गेंदा (Marigold), मोगरा (Jasmine) | तोरण, बंदनवार, फूलों की मालाएँ | गेंदा शुभता का प्रतीक है; मोगरा की खुशबू वातावरण को शुद्ध करती है |
गुजरात | गेंदा, गुलाब (Rose), चमेली (Jasmine) | रंगोली के साथ फूलों की सजावट, मंडप में लटकती मालाएँ | पूजा थाली में रंगीन फूलों का उपयोग; गेंदा और गुलाब की विविध रंगत प्रिय है |
राजस्थान | गेंदा, गुलाब, केवड़ा (Screwpine) | फूलों से बने झूमर, दीवार पर लटकने वाले हार | सुगंधित फूलों से वातावरण सुगंधित किया जाता है; पारंपरिक मेलों और त्योहारों में विशेष महत्व |
विशिष्ट फूल: गेंदा और मोगरा का महत्व
गेंदा (Marigold) और मोगरा (Jasmine) पश्चिम भारत के सभी राज्यों में पूजा-पाठ के लिए सबसे पसंदीदा फूल माने जाते हैं। गेंदा पीले और नारंगी रंग में होता है जो समृद्धि एवं सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। मोगरा की सफेद कलियाँ शुद्धता तथा इसकी सुगंध वातावरण को पवित्र बनाती है। इन दोनों फूलों से मंदिर, घर तथा पूजा स्थल को सजाया जाता है।
महाराष्ट्र: यहाँ गेंदा-मोगरा की मालाएँ देवी-देवताओं को पहनाई जाती हैं। घर के द्वार पर तोरण या बंदनवार भी इन्हीं फूलों से बनाए जाते हैं।
गुजरात: पूजा थाली सजाने से लेकर मंडप तक हर जगह रंग-बिरंगे फूल नजर आते हैं। खासकर नवरात्रि और अन्य पर्वों पर गेंदा बहुत इस्तेमाल होता है।
राजस्थान: यहाँ मेलों व त्योहारों पर केवड़ा व गुलाब जैसे सुगंधित फूलों से झूमर और हार बनाए जाते हैं। ये न सिर्फ सजावट बल्कि स्वागत-सत्कार का हिस्सा भी होते हैं।
5. आधुनिक प्रवृत्तियाँ व सांस्कृतिक समावेश
परंपरागत पुष्प सजावट में आधुनिकता का मिश्रण
भारत के विभिन्न राज्यों में पारंपरिक पूजा फूल सजावट शैलियाँ समय के साथ बदल रही हैं। आजकल लोग परंपरा और आधुनिकता का सुंदर मिश्रण बना रहे हैं। पुराने तरीकों में जहाँ केवल ताजे फूलों की माला या तोरण बनाए जाते थे, वहीं अब कृत्रिम फूलों, रिबन, रंगीन लाइट्स और ग्लिटर का भी उपयोग किया जा रहा है। इससे सजावट ज्यादा आकर्षक और टिकाऊ हो गई है।
शहरी और ग्रामीण इलाकों में बदलती सजावट शैलियाँ
क्षेत्र | पारंपरिक सजावट | आधुनिक सजावट |
---|---|---|
शहरी क्षेत्र | मोगरा, गुलाब, गेंदा की मालाएँ व तोरण | कृत्रिम फूल, LED लाइट्स, थीम बेस्ड डेकोरेशन |
ग्रामीण क्षेत्र | स्थानीय फूलों से बने बंदनवार व रंगोली में पुष्प प्रयोग | कुछ जगहों पर प्लास्टिक फूल एवं सस्ते सजावटी सामान का प्रयोग |
सांस्कृतिक विविधता का आदान-प्रदान
भारत की सांस्कृतिक विविधता के कारण एक राज्य की पुष्प सजावट शैली दूसरे राज्य में भी लोकप्रिय हो रही है। जैसे बंगाल की अल्पना और पुष्प संयोजन अब महाराष्ट्र या तमिलनाडु में भी देखा जाता है। इसी तरह उत्तर भारत के मंदिरों में दक्षिण भारतीय फूलों जैसे मल्लिका और चमेली का चलन बढ़ा है। इस तरह पूरे देश में परंपरागत और आधुनिक पुष्प सजावट का अनूठा संगम देखा जा सकता है।